सर्दी की उन बर्फीली रातों में
क्या तुम आज भी ठिठुर सी जाती हो?
मेरी बाहों का सहारा न पाकर
कहीं तुम डर तो न जाती हो?
वह ठंडी ठंडी हवाएं
क्या तुम्हे मेरी याद दिलाती है
जब मेरे हाथों के जगह
वो प्यार से तुम्हारे बालों को सहलाती है
वो उगता हुआ सूरज
क्या आज भी तुम्हारे चेहरे पे मुस्कान लाता है
वो भीनी सी सूरज की किरणें
क्या आज भी हमारे प्यार को जवाँ कर जाती है?
अँधेरे में जाने से पहले
क्या तुम आज भी डरती हो?
हर सुबह उठकर
क्या तुम आज भी अपनी उलझी हुई बालों से लड़ती हो?
साया बनके आया था तेरा
साया बनके जाऊँगा
दिए के लौ के तले भी
अंधियारा बनके साथ निभाऊंगा
तू भूल जा मुझे ओ मेरी जान
मैं न भूल पाऊंगा
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर
ऐसे ही तराने गुनगुनाता चला जाऊँगा.
Sunday, October 31, 2010
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Comments by IntenseDebate
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गुनगुनाता चला जाऊँगा
2010-10-31T10:23:00+05:30
crazyavi
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ruchi · 753 weeks ago